Sanskrit/Hindi | Transaltion | Meaning |
तिरश्चामपि चारातिसमवायं समेयुषाम् । यतः सुग्रीवमुख्यानां यस्तमुग्रं नमाम्यहम्॥ १ ॥ |
Tirshchāmapi chārātisamavāyaṁ sameyuṣhām. Yataḥ sugrīvamukhyānāṁ yastamugraṁ namāmyaham. || 1 || |
अपने मुख्य शत्रु रावणके विनाशके लिये जिन्होने कपिराज सुग्रीवादि तिर्यक योनिमे उत्पन्न वानर-भालुओंकी सेना संगठित की उन अति उग्र भगवान् रामको मै नमस्कार करता हूँ । |
सकुदेव प्रपन्नाय विशिष्टामैरयच्छ्रियम् । बिभीषणायाब्धितटे यस्तं वीरं नमाम्यहम् ॥ २ ॥ |
Sakudeva prapannāya viśhiṣhṭāmairayachchhriyam. Bibhīṣhaṇāyābdhitate yastaṁ vīraṁ namāmyaham. || 2 || |
समुद्रतटपर आये बिभीषणको केवल एक बार ‘ मैं आपको शरण हूँ ‘ ऐसा कहनेपर जिन्होने लंका आदिके राज्यसहित अपार वैभवको प्रदान किया, उस महावीर श्रीरामको मैं प्रणाम करता हूँ । |
यो महान् पूजितो व्यापी महान् वै करुणामृतम् । श्रुतं येन जटायोश्च महाविष्णुं नमाम्यहम् ॥ ३ ॥ |
Yo mahān pūjito vyāpī mahān vai karuṇāmṛitam. Śhrutaṁ yena jaṭāyośhcha mahāviṣhṇuṁ namāmyaham. || 3 || |
जो सर्वव्यापक हैं, सबसे महान् हैं और देवता, ऋषि-मुनियोंसे भी पूजित हैं तथा महान् कृपा-सुधा मूर्तिमान् स्वरुप हैं और उस कृपा-सुधासे जटायुतको भी जिन्होंने संसिक्तकर मुक्त कर दिया, उन महाविष्णुस्वरुप भगवान् रामको मैं प्रणाम करता हूं । |
तेजसाप्यायिता यस्य ज्वलन्ति ज्वलनादयः । प्रकाशयते स्वतन्त्रो यस्तं ज्वलन्तं नमाम्यहम् ॥ ४ ॥ |
Tejasāpyāyitā yasya jvalanti jvalanādayaḥ. Prakāśhayate svatanstro yastaṁ jvalantaṁ namāmyaham. || 4 || |
अग्नि, चन्द्रमा और सूर्य आदि तेजस्वी ज्योतिष्पुंज जिनके तेजसे ही प्रकाशित एवं प्रज्वलित होते हैं और जो स्वयं अपने तेजसे प्रकाशित होते हैं, उन प्रज्वलित तेजोमय भगवान् रामको मै प्रणाम करता हूं । |
सर्वतोमुखता येन लीलया दर्शिता रणे । रक्षसां खरमुख्यानां तं वन्दे सर्वतोमुखम् ॥ ५ ॥ |
Sarvatomukhatā yena līlayā darśhitā raṇe. Rakṣhasāṁ kharamukhyānāṁ taṁ vande sarvatomukham. || 5 || |
रणस्थलमें खर-दूषण, त्रिशिरा आदि राक्षसोंसे युद्ध करते समय जिन्होंने अपनी लीलासे अपना मुखमण्डल सभी ओर दिखलाया (और सबका नाश कर दिया), उन सर्वतोमुख भगवान् रामकी मैं वंदना करता हूं । |
नृभावं यः प्रपन्नानां हिनस्ति च तथा नृषु । सिंहः सत्त्वेष्विवोत्कृष्टस्तं नृसिंहं नमाम्यहम् ॥ ६ ॥ |
Nṛbhāvaṁ yaḥ prapannānāṁ hinasti cha tathā nṛṣhu. Siṁhaḥ sattveṣhvivotkṛṣhṭaḥ taṁ nṛsiṁhaṁ namāmyaham. || 6 || |
शरणमें आते ही जो मनुष्योंके सामान्य मोहमय मनुष्यभावको नष्टकर उन्हें लोकोत्तर ज्ञान एवं विशिष्ट दिव्य शक्तियोंसे सम्पन्न कर देते हैं और जो सम्पूर्ण विश्वमे सिंहके समान बली हैं, उन नरसिंह भगवान् रामको मैं नमन करता हूँ । |
यस्माद्विभ्यति वातर्कज्वलनेन्द्राः समृत्यवः । भियं तनोति पापानां भीषणं तं नमाम्यहम् ॥ ७ ॥ |
Yasmādvibhyati vātarkajvalanendrāḥ samṛityavaḥ. Bhiyaṁ tanoti pāpānāṁ bhīṣhaṇaṁ taṁ namāmyaham. || 7 || |
जिनसे वायु, सूर्य, अग्नि, इन्द्र, यम आदि सभी भयभीत रहते हैं और पाप तो उनके भयसे सदा ही दूर भागता है, उन भीषण रामको मैं नमस्कार करता हूँ । |
परस्य योग्यतापेक्षारहितो नित्यमङ्गलम् । ददात्येव निजौदार्याद्यस्तं भद्रं नमाम्यहम् ॥ ८ ॥ |
Parasya yogyatāpekṣhārahito nityamaṅgalam. Dadātyeva nijaudāryādyastaṁ bhadraṁ namāmyaham. || 8 || |
जो अपने भक्तोंकी किसी योग्यता अपेक्षा किये बिना ही अपने उदार-स्वभावके कारण सदा सब कुछ देते ही रहते हैं और नित्य मंगलस्वरुप हैं, उन परम भद्र-स्वरुप सौजन्यमूर्ति भगवान् रामको मैं प्रणाम करता हूँ । |
यो मृत्युं निजदासानां नाशयत्यखिलेष्टदः । तत्रोदाहृतये व्याधो मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥ ९ ॥ |
Yo mṛtyuṁ nijadāsānāṁ nāśhayatyakhileṣhṭadaḥ. Tatrodāhṛtaye vyādho mṛtyumṛtyuṁ namāmyaham. || 9 || |
जो अपने भक्तोंके मृत्युका समूलोच्छेदन कर उसकी सारी अभिलाषा पूर्ण कर देते हैं, इस सम्बन्धमें वाल्मीकि जो पहले कभी व्याधका काम कर रहे थे, परम प्रमाण हैं । ऐसे मृत्युके भी मृत्यु भक्तवत्सल भगवान्को मैं प्रणाम करता हूँ । |
यत्पादपद्मप्रणतो भवत्युत्तमपुरुषः । तमजं सर्वदेवानां नमनीयं नमाम्यहम् ॥ १० ॥ |
Yatpādapadmapraṇato bhavatyuttamapuruṣhaḥ. Tamajaṁ sarvadevānāṁ namanīyaṁ namāmyaham. || 10 || |
जिनके चरणकमलो प्रणाम करते ही अधम पुरुष भी अति उत्तम पुरुश बन जाता है, उन जन्मादि षड्विकारोंसे मुक्त, सभी देवताओंके द्वारा वन्दनीय भगवान् रामकी मैं वन्दना करता हूँ । |
अहंभावं समुत्सृज्य दास्येनैव रघुत्तमम् । भजेऽहं प्रत्यहं रामं ससीतं सहलक्ष्मणम् ॥ ११ ॥ |
Ahaṁbhāvaṁ samutsṛjya dāsyenaiva raghuttamam. Bhaje’haṁ pratyahaṁ rāmaṁ sasītaṁ sahalakṣhmaṇam. || 11 || |
मै (हनुमान्) ब्रह्मैकात्म-भावका परित्याग कर दास्यभाव अर्थात् सेव्य-सेवककी भावनासे अहर्निश लक्ष्मणसहित श्रीसीतारामकी उपासना करता हूँ । |
नित्यं श्रीरामभक्तस्य किंकरा यमकिंकराः । शिवमय्यो दिशस्तस्य सिद्धयस्तस्य दासिकाः ॥ १२ ॥ |
Nityaṁ śrīrāmabhaktasya kiṁkarā yamakiṁkarāḥ.
Śivamayyo diśhastasya siddhayastasya dāsikāḥ. || 12 || |
भगवान् श्रीरामके भक्तोंके लिये यमदूत भी सदाके लिये किंकर (दास, सेवक) बन जाते हैं, उसके लिये दसों दिशाएँ मंगलमयी हो जाती हैं और सभी सिद्धियाँ उसके चरणोमै लोटती है । |
इमं हनुमता प्रोक्तं मन्त्रराजात्मकं स्तवम् । पठत्यनुदिनं यस्तु स रामे भक्तिमान् भवेत् ॥ १३ ॥ |
Imaṁ hanumatā proktaṁ mantrarājātmakaṁ stavam. Paṭhatyanudinaṁ yastu sa rāme bhaktimān bhavet. || 13 || |
हनुमान्जीद्वारा प्रोक्त इस मन्त्रराजात्मकक स्तोत्रका नित्य पाठ करता है, वह भगवान् श्रीरामका भक्त हो जाता है । |
Benefits of Shri Hanumat Prokta Mantrarajatmak Ramstav Stotram:
This stotram helps us create a strong devotion and a special relationship with Lord Rama, who is a symbol of respect and sacredness.
Protection from Negative Influences: By reciting this stotram, one can invoke the protective energies of Lord Hanuman and seek refuge from negative influences and obstacles in life. It is believed to create a shield of divine protection around the devotee.
Inner Strength and Courage: The stotram inspires and instills inner strength, courage, and fearlessness within the devotee. It is particularly associated with the heroic qualities of Lord Hanuman, who fearlessly faced challenges and defeated powerful adversaries.
Spiritual Growth and Enlightenment: It is thought that reciting the stotram promotes spiritual maturity and spiritual awareness. It encourages purification of the mind, stimulates serendipitous insight, and bolsters someone’s relationship with their higher being.
Removal of Obstacles: Reciting this stotram with faith and devotion can help overcome various obstacles and challenges in life. Many people turn to it for help when they are faced with challenging challenges and need a way through them..